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✍️ रोहित
लन्दन में जाकर जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड के आरोपी जनरल डायर को मौत के घाट उतारने वाले माँ भारती के शेर वीर ऊधम सिंह के बलिदान दिवस (31 जुलाई 1940 ई0) पर उस शेर को शत्-शत् नमन्....... जालियाँवाले बाग की शहादत के बदले को, लेने का विचार बड़ा कठिन कदम था। जान-बूझ कर बस मौत को बुलावा था ये, नहीं किसी भाँति उससे ये कभी कम था। किन्तु मान लिया और बस ठान लिया यही, इसलिये बना डायर के लिये यम था। लन्दन में जाके सीना ठोक दिया डायर का, भारती का पुत्र वीरवर वो ऊधम था।।
Ashish Jain
तख़्त लंदन तक हिला, ऊधम सिंह के कंपन से हे वीर ! हम ऋणी सदैव, तेरे उस समर्पण से..! आज दुष्यंत की पंक्ति याद आती है कि "मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए...!" इन्हीं पंक्तियों से एक भारत माँ का बेटा याद आता है...! जो जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड की आग को 21 साल तक अपने सीने में लिए धधकता रहा। ये आग तब ठंडी हुई जब उसने अपने सैकड़ो भाई-बहन की हत्या का प्रतिशोध ले लिए। १३ मार्च १९४० में रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लन्दन में हो रही बैठक में डायर को गोली मार कर हत्या कर दी। आजकल की धार्मिक कट्टरता को तमाचा मारने के लिए उसका नाम ही काफ
आज दुष्यंत की पंक्ति याद आती है कि "मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए...!" इन्हीं पंक्तियों से एक भारत माँ का बेटा याद आता है...! जो जलियांवाला बाग में हुए हत्याकांड की आग को 21 साल तक अपने सीने में लिए धधकता रहा। ये आग तब ठंडी हुई जब उसने अपने सैकड़ो भाई-बहन की हत्या का प्रतिशोध ले लिए। १३ मार्च १९४० में रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लन्दन में हो रही बैठक में डायर को गोली मार कर हत्या कर दी। आजकल की धार्मिक कट्टरता को तमाचा मारने के लिए उसका नाम ही काफ
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 6 - न्यायशास्त्री 'अरे, तूने फिर ये कपि एकत्र कर लिये?' माँ रोहिणी जानती हैं कि इस नीलमणिके संकेत करते ही कपि ऊपर से प्रांगण में उतर आते हैं। उन्हें डर लगता है, कपि चपल होतें हैं और यह कृष्णचन्द्र बहुत सुकुमार है। यह भी कम चपल नहीं है। चाहे जब कपियों के बच्चों को उठाने लगता है। उस दिन मोटे भारी कपि के कन्धे पर ही चढ़ने लगा था। कपि चाहे जितना इसे माने, अन्नत: पशु ही हैं। वे इसे गिरा दे सकते हैं। माता बार-बार मना करती है कि - 'कपियों को प्रांगण में मत बुलाया कर! मैं इनके लिए भवन
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