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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये। राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
11 - महत्संग की साधना

'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये।

राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 42 - कुछ बात है आज कन्हाई वन में आकर बहुत थोड़ी देर खेलता रहा है। यह बालकों का साथ छोड़कर अकेले मालती-कुञ्ज में आ बैठा है। दाऊ तो प्राय: अकेले बैठ जाता है; किंन्तु कृष्ण इस प्रकार अकेले चुपचाप बैठे, यह इस चपल के स्वभाव के अनुकूल तो है नहीं। इसलिए अवश्य कुछ बात है। मालती ने चढ़कर तमाल को लगभग आच्छादित कर लिया है। नीचे से ऊपर तक इस प्रकार छा गयी है कि भूमि से तमाल के शिखर तक केवल हरित मन्दिर दीखता है। इसमें भीतर जाने का द्वार भी छोटा ही है। अवश्य इतने छिद्र मध्य में हैं कि वायु तथा

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।।श्री हरिः।।
42 - कुछ बात है

आज कन्हाई वन में आकर बहुत थोड़ी देर खेलता रहा है। यह बालकों का साथ छोड़कर अकेले मालती-कुञ्ज में आ बैठा है। दाऊ तो प्राय: अकेले बैठ जाता है; किंन्तु कृष्ण इस प्रकार अकेले चुपचाप बैठे, यह इस चपल के स्वभाव के अनुकूल तो है नहीं। इसलिए अवश्य कुछ बात है।

मालती ने चढ़कर तमाल को लगभग आच्छादित कर लिया है। नीचे से ऊपर तक इस प्रकार छा गयी है कि भूमि से तमाल के शिखर तक केवल हरित मन्दिर दीखता है। इसमें भीतर जाने का द्वार भी छोटा ही है। अवश्य इतने छिद्र मध्य में हैं कि वायु तथा

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 18 - वर्षा में श्याम को जल से सहज प्रेम है और वर्षा हो रही हो, तब तो पूछना ही क्या? सभी बालक प्राय: वर्षा में भीगकर स्नान करने के व्यसनी होते हैं। कन्हाई को कोई रोकनेवाला न हो तो यह तो शरत्कालिन वर्षा में भी भीग-भीगकर स्नान करता, उछलता-कूदता फिरे। यह तो पावस की वर्षा है। इसमें तो पशु भी नीचे छिपने नहीं जाते। उन्हें भी भीगने में आनन्द आता है। प्रातःकाल बालक गोचारण के लिए चलते थे, तब आकाश में थोड़े ही मेघ थे; किन्तु पावस में घटा घिरते देर कितनी लगती है। आकाश प्रथम प्रहर बीतते ही मे

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।।श्री हरिः।।
18 - वर्षा में

श्याम को जल से सहज प्रेम है और वर्षा हो रही हो, तब तो पूछना ही क्या? सभी बालक प्राय: वर्षा में भीगकर स्नान करने के व्यसनी होते हैं। कन्हाई को कोई रोकनेवाला न हो तो यह तो शरत्कालिन वर्षा में भी भीग-भीगकर स्नान करता, उछलता-कूदता फिरे। यह तो पावस की वर्षा है। इसमें तो पशु भी नीचे छिपने नहीं जाते। उन्हें भी भीगने में आनन्द आता है।

प्रातःकाल बालक गोचारण के लिए चलते थे, तब आकाश में थोड़े ही मेघ थे; किन्तु पावस में घटा घिरते देर कितनी लगती है। आकाश प्रथम प्रहर बीतते ही मे

Raj Yadav

फैली खेतों में दूर तलक मख़मल की कोमल हरियाली, लिपटीं जिससे रवि की किरणें चाँदी की सी उजली जाली ! तिनकों के हरे हरे तन पर हिल हरित रुधिर है रहा झलक, श्यामल भू तल पर झुका हुआ नभ का चिर निर्मल नील फलक। #Music

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फैली खेतों में दूर तलक
 मख़मल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
 चाँदी की सी उजली जाली !
तिनकों के हरे हरे तन पर
 हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
 नभ का चिर निर्मल नील फलक।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 54 - प्रेम 'दादा।' यह कनूं अपने दादा को सदा सकारण ही पुकारे, ऐसा कुछ नहीं है। इसका तो यह एक स्वभाव हो गया है। सोते में भी यह अनेक बार 'दादा, दादा' कर उठता है। इसकी यह पुकार भी बड़ी अद्भुत है। प्रत्येक बार इसके स्वर में उत्साह, कुतूहल, प्रेम - पता नहीं क्या - क्या होता है। प्रायः यह ऐसे उत्साह से पुकारता है, जैसे कोई बहुत अद्भुत बात अपने दादा से कहने जा रहा हो या फिर इसका दादा इसे कई युगों के बाद मिला हो। और यह दाऊ भी कन्हाई जब भी पुकारेगा, इसके नेत्र उसकी ओर घूम ही जाएंगे। बदले #Books

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|| श्री हरि: ||
54 - प्रेम

'दादा।' यह कनूं अपने दादा को सदा सकारण ही पुकारे, ऐसा कुछ नहीं है। इसका तो यह एक स्वभाव हो गया है। सोते में भी यह अनेक बार 'दादा, दादा' कर उठता है। इसकी यह पुकार भी बड़ी अद्भुत है। प्रत्येक बार इसके स्वर में उत्साह, कुतूहल, प्रेम - पता नहीं क्या - क्या होता है। प्रायः यह ऐसे उत्साह से पुकारता है, जैसे कोई बहुत अद्भुत बात अपने दादा से कहने जा रहा हो या फिर इसका दादा इसे कई युगों के बाद मिला हो।

और यह दाऊ भी कन्हाई जब भी पुकारेगा, इसके नेत्र उसकी ओर घूम ही जाएंगे। बदले

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 53 - श्रृंगार 'तू मेरा पुष्प मत तोड़।' श्याम अपने बड़े भाई का श्रृंगार करना चाहता है। इसे स्वयं सब प्रसाधन-सामग्री एकत्र करनी है। अब इसके देखे पसंद किए पुष्प, प्रवाल आदि कोई लेने लगे तो यह झगड़ेगा ही। 'अच्छा ले। तू ही ले ले इसे।' ऋषभ सीधा है। कन्हाई से झगड़ना उसे रुचता नहीं। अब उसके तोड़े फूल को यह नटखट अपना बता रहा है तो इसी का सही। दूसरा तोड़ लेगा वह। 'तूने मेरा पुष्प तोड़ा क्यों? इसे वहीं लगा दे।' श्याम तो झगड़ने का बहाना ढूंढता रहता है। भला, टूटा फूल कहीं फिर से टहनी में ज #Books

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|| श्री हरि: ||
53 - श्रृंगार

'तू मेरा पुष्प मत तोड़।' श्याम अपने बड़े भाई का श्रृंगार करना चाहता है। इसे स्वयं सब प्रसाधन-सामग्री एकत्र करनी है। अब इसके देखे पसंद किए पुष्प, प्रवाल आदि कोई लेने लगे तो यह झगड़ेगा ही।

'अच्छा ले। तू ही ले ले इसे।' ऋषभ सीधा है। कन्हाई से झगड़ना उसे रुचता नहीं। अब उसके तोड़े फूल को यह नटखट अपना बता रहा है तो इसी का सही। दूसरा तोड़ लेगा वह।

'तूने मेरा पुष्प तोड़ा क्यों? इसे वहीं लगा दे।' श्याम तो झगड़ने का बहाना ढूंढता रहता है। भला, टूटा फूल कहीं फिर से टहनी में ज


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