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Anil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 14 - कोप या कृपा 'मातः!' बड़ा करुण स्वर था हिमभैरव का। यह उज्जवल वर्ण, स्वभाव से स्थिर-प्रशान्त, यदा-कदा ही क्रुद्ध होने वाला रुद्रगण बहुत कम बोलता है। बहुत कम अन्य गणों के सम्पर्क में आता है। उग्रता की अपेक्षा सौम्यता ही इसमें अधिक है। साम्बशिव की एकान्त सेवा और स्थिर आसन किंतु जब इसे क्रोध आता है - अन्ततः भैरव ही है, पूरा प्रलय उपस्थित कर देगा। किंतु आज यह बहुत ही व्यथित जान पड़ता है। 'तुम इतने कातर क्यों हो वत्स?' जगदम्बा शैलसुता ने अनुक
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|| श्री हरि: || 70 - भूख 'दादा। मुझे भूख लगी है।' कन्हाई की भूख इसके उदर में नहीं रहती, पदार्थ में रहती है। जब कोई पदार्थ और उसे प्रस्तुत करने वाला श्याम को भोजन कराना चाहता है मोहन भूखा हो उठता है। 'मेरे छीके में अभी तेरे लिए भोजन बचा है।' दाऊ अपने छोटे भाई के लिए प्राय: अपने छीके में कुछ न कूछ बचा रखता है। सखाओं के साथ भोजन करते समय श्याम स्वयं तो कूछ खाता ही नहीं। यह तो दूसरों को खिलाने में ही रह जाता है। अब वन-भौजन के घण्टेभर पीछे ही इसे भूख लग गयी तो आश्चर्य की क्या बात है। 'मैं बासी नही
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