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narayana
वह था बचपन का प्यार, या सबाब ? पर नाजाने क्यों मैं थी इश्क़ से अनजान। जब वो ज़ुल्फ़ों को संवारता था, में जाती थी शरमा। पर सब कहते थे यह है रंग गुलाबी। फिर जब वह होता था करीब तो न जाने क्यों धड़कने जाती थी बड़। और सब कहते थे कि है यह रंग लाल। जैसे जैसे वह एहसास बढ़ा, सबका सवाल यूँ उठा। क्या बात आजकल सुनहरी है छवि तेरी? फिर भी न समझ पायी कि क्या है यह रंगों का सवाल। जब उसका खत है प्रिन्सिपल ने लिया पकड़, तो सब कहने लगे, मैं हूँ ओढे शर्म का रंग नीला। अब जब सब प्रश्न करने लगे तो मैं हो गयी उसके बचाओ में खड़े। और लोग कहने लगे काला है दिल मेरा। बस वही पल था कि मुझे एहसास हुआ कि इश्क़ का रंग है लाल, ओर यह है सिर्फ परवाने जानते। यूँ कुछ बात आगे बड़ी, कि चड़ गया रंग पीला। ओर हो गया गठबंदन हमारा। फिर हुआ एहसास कि इश्क़ के लाखों रंग है ओढे हमने। #nojotohindi #इश्क़ के लाखों रंग
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read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || 73 - श्याम पहले जगा 'श्यामसुंदर। उठ लाल। देख तो कितना सवेरा हो गया। देख तेरा मयूर आंगन में कैसा नाच रहा है।' मैया बहुत धीरे-धीरे हाथ फेर रही है मोहन के शरीर पर। वह बार-बार रुक जाती है - अभी जगाये या न जगाये? किंतु देर होने पर यह ठिकाने से कलेऊ भी नहीं करता। एक ही शय्या पर नीलाम्बर ओढे दाऊ और पीतपट ओढे श्याम सो रहे हैं। मैया चाहती है कि अब दोनों पृथक सोना सीखें, पर कन्हाई को बड़े भाई के बिना नींद ही नहीं आती। 'देख तो कितनी देर से बेचारे ये नन्हें पक्षी तुझे पुकार रहे हैं। कितने
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