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महरुमे तकल्लुम बिना वज़ाहत कर गए, अपनी मौजूदगी से आसूदग हमें कर गए, इसरार-ए-दिल कबूल कर ए यार -ए -गराँ, कुफ्र ए कलयुग में मिरी जि़यारत कर गए। Urdu_Word_Collab_Challenge_ Collab करें मेरे साथ 👉 Urdu_Hindi Poetry आज का लफ्ज़ है "वज़ाहत" अब पहले की तरह एक विजेता नहीं बल्कि 3 विजेता चुना जाएगा,, जो सबसे पहला विजेता होगा उनको testimonial किया जाएगा ! और दूसरे और तीसरे नंबर वाले विजेता को 'हाइलाइट' किया जाएगा। Example:
Urdu_Word_Collab_Challenge_ Collab करें मेरे साथ 👉 Urdu_Hindi Poetry आज का लफ्ज़ है "वज़ाहत" अब पहले की तरह एक विजेता नहीं बल्कि 3 विजेता चुना जाएगा,, जो सबसे पहला विजेता होगा उनको testimonial किया जाएगा ! और दूसरे और तीसरे नंबर वाले विजेता को 'हाइलाइट' किया जाएगा। Example:
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 15 - तामस त्याग नियतस्य तु संन्यास: कर्मणो नोपपद्यते। मोहात्तस्य परित्यागस्तामस: परिकीर्तितः।। (गीता 18।7)
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 11 – अभय गंगोत्तरी से गंगाजी नहीं निकली हैं, यह बात वे सब लोग जानते हैं जो वहाँ गये हैं अथवा जानेवालों से मिले हैं, उनके विवरण पढे हैं। गंगाजी गोमुख से प्रकट हुई हैं। वैसे वे निकली तो हैं नारायण के चरणों से - भौतिकरूप में भी उनका हिमस्त्रोत (ग्लेशियर) नारायण पर्वत के चरणों से चलकर शिवलिंगी शिखर के ऊपर होता गोमुख तक आया है। गंगोत्तरी में तो गंगाजी की मूर्ति है। गोमुख गंगोत्तरी से गत वर्ष 18 मील दूर था। कुछ वर्ष पूर्व यह दूरी 12 मील थी। हिम
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 16 – भाग्य-भोग 'भगवन! इस जीव का भाग्य-विधान?' कभी-कभी जीवों के कर्मसंस्कार ऐसे जटिल होते हैं कि उनके भाग्य का निर्णय करना चित्रगुप्त के लिये भी कठिन हो जाता है। अब यही एक जीव मर्त्यलोक से आया है। इतने उलझन भरे इसके कर्म है - नरक में, स्वर्ग में अथवा किसी योनि-विशेष में कहाँ इसे भेजा जाय, समझ में नहीं आता। देहत्याग के समय की इसकी अन्तिम वासना भी (जो कि आगामी प्रारब्ध की मूल निर्णायिका होती है) कोई सहायता नहीं देती। वह वासना भी केवल देह की स्
read moreAnil Siwach
|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 5 – जीवन का चौराहा 'आप कुछ व्यस्त दीखते हैं!' देवर्षि ने चित्रगुप्त की ओर देखा। 'भगवन!' आतुरतापूर्वक अपनी लेखनी एवं अनन्त कर्मपत्र एक ओर रखकर उठे वे जीवों के कर्मों का विवरण
read moreAnkit pandey
पूर्णविराम- तुम उपविराम बन आ जाती हो जब भी मेरी पोथी में, मैं तुमसे मिलने आता हूँ बन योजक चिन्ह प्रतीक प्रिये, तुम प्रश्न बोध करवाती तब, लगता मैं विष्मय बोधक सा, तुम निर्देशक चिन्हित होती, मैं हो जाता विस्तार प्रिये, तुम अल्प विराम बनी फिरती, मैं होता अर्ध विराम पुनः, तुम कोष्टक चिन्हित होती हो,मैं विवरण सा विस्तार प्रिये, तुम कर्ता-कारक लगती हो,मैं क्रिया विशेषण बना फिरूँ, तुम संज्ञा होती अगर कहीं, मैं सर्वनाम का नाम प्रिये, तुम आती गर योजक बन कर,मैं उपविराम बन लग जाता, दोनों मिलकर उद्धरण बने फिर विवरण चिन्ह बना जाता, तुम संधि शब्द बन आ जाती,मैं होता उसके भेद प्रिये, तुम होती गर विच्छेदन तब, मैं बन जाता आकार प्रिये, तुम अनेकार्थी बन आती, मैं एकार्थक में खुश रहता, तुम पर्यावाची दिखती जब, बन जाता वहीँ समास प्रिये, तुम रस बनकर के आ जाओ, मैं ले लूं एक श्रृंगार प्रिये, तुम हिंदी में छप जाओगी,जब है शब्दों में प्यार प्रिये, मैं चाहूँ इन्ही विरामों को, ये जीवन का आधार दिखें, आओ मेरे तुम जीवन में बन कर के पूर्ण विराम प्रिये, मैं हिंदी को लिखता बैठूँ, तुम बन जाओ आराम प्रिये, बन जाओ पूर्ण विराम प्रिये,बन जाओ पूर्ण विराम प्रिये।। #DPF #poem #word #poornaViram #poet #kavishala #hindinama #kavita #nojoto #words
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