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अनुभव पंडित जी

Hindi kavita BY Raushan kashyap

माँ भगवती..(वन्दना)

माँ भगवती, माँ भगवती, 

माँ भगवती, माँ भगवती।

करते हैं हम तेरी आरती,

करते हैं हम तेरी आरती।।


कर दाे कृपा हम सब पे ही,

घर आओ हमारे इस नवरात्री।

कष्टाें का हमारे तुम विनाश कर,

कर दाे कृपा हम सब पे ही।।


बाझिन की सूनी गाेद भर दाे,

ममता की आँचल हक में दे दाे।

हर घर की सूनी आँगनाें में माता,

किलकारी गूंजे ऐसी शाेर कर दाे।।



माँ भगवती, माँ भगवती, 

माँ भगवती, माँ भगवती।

करते हैं हम तेरी आरती,

करते हैं हम तेरी आरती।।


विपदा में ये जग जल रहा है,

तेरे भक्ताें घर ऊजड़ रहा है।

वेदना सहने की साहस और ,

तेरे भक्ताें में अब नहीं बचा हैं।।


कर दाे कुछ ऐसा चमत्कार भी,

जीवन की जय मृत्यु की हाे हार भी।

सब कुछ हाे पहले जैसा ही,

माँ भगवती , माँ भगवती ।


माँ भगवती, माँ भगवती, 

माँ भगवती, माँ भगवती।

करते हैं हम तेरी आरती,

करते हैं हम तेरी आरती।।

....राैशन

©Hindi kavita BY Raushan kashyap #Durgapuja #वन्दना #Nojoto #poem #Poetry 

#BooksBestFriends

Hindi kavita BY Raushan kashyap

ऊँ नम: शिवाय...(वन्दना)

ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय,

तुझ बिन क्या जग का अभिप्राय?

ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय,

कण-कण में तुझकाे ही पाए।।


ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम: शिवाय,

तेरी शरण में जाे भी भक्त आए,

खाली हाथ कभी भी ना  जाए,

ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय।।


ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम: शिवाय,

तेरा  दर्शन जा पाए वाे अमर हाे जाए,

मृत्यु से जीवन का सार तुझमें ही पाए,

ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय।।


ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय,

तेरी ज्याेत से जग राैशन हाे जाए,

चाँद तेरे मस्तक पे गंगा में हैं समाए,

ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय।।


ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय,

विष पीकर खुद जिसने देवाें काे है बचाए,

हे नीलकंठ तेरी महिमा देवगण भी गाएं,

ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय।।


ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय,

तुझ बिन क्या जग का अभिप्राय?

ऊँ नम: शिवाय, ऊँ नम:शिवाय,

कण-कण में तुझकाे ही पाए।।

 🖊राैशन

©Hindi kavita BY Raushan kashyap #वन्दना 
#शिव 
#Nojoto 

#Maha_shivratri

Priti Meharwal

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
3 – अकुतोभय

हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!'

वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

manav raj(मानव)

*माँ *

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आओ करे  मातृ वन्दना  निज मे शक्ति संचार करे।
खुद को जाने खुद को साधे अन्तस  का सृंगार करे।
हम हे  मनुज हम ईश  अनुज खुद को जाने अभिमान करे
छल  छिद्र कपट को त्याग,मन के शोधन का ध्यान धरे।।
आओ करे मातृ  वन्दना निज में  शक्ति संचार करे
। *माँ *

Sunny Lakhiwal

Prakash Shukla

कृष्ण वन्दना मैं करूँकृष्ण वन्दना
यशोदा का लाल खेलै सोहे आँगना
मैया यशोदा का लाला बड़ा प्यारो
संग सब खेलन चाहेँ लल्ला से मेल न
कृष्ण वन्दना मैं करूँ कृष्ण वन्दना
खेलैं सखा संग आँख मिचोली
करी गोपियन संग रास ठिठोली,मैया की डाँट झेलना
कृष्ण वन्दना मैं करूँ कृष्ण वन्दना

#प्रकाश

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
3 – अकुतोभय

हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!'

वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही


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