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डॉ जेपीएस चौहान
जिन सिद्धांतों के कारण सत्ता का वनवास खत्म हुआ था आज उन सिद्धांतों से विमुख होने के कारण कार्यकर्ताओं और प्रदेश के युवाओं में असंतोष उपज रहा है।यदि सरकार पिछली सरकार के भर्ती घोटाले की जांच नहीं कराती तो यह पार्टी को डुबाने वाला आत्मघाती कदम होगा। सहायक प्राध्यापक भर्ती घोटाले की जांच कराएं, अतिथि विद्वान नियमितीकरण का वचन निभाएं #Survive
Ajay Amitabh Suman
नमक बेईमानी का अरोड़ा साहब का कपड़ों के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का दिल्ली में बहुत बड़ा कारोबार था। अक्सर वो चीन के व्यापारियों से संपर्क करके उनसे कपड़ों के एक्सपोर्ट का आर्डर लेते, फिर अपनी फैक्ट्री में कपड़ों को बनवा कर चीन भेज देते। इस काम में अरोड़ा साहब को बहुत मुनाफा होता था। उनकी इंपोर्ट और एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट में बहुत बड़ी पहुंच थी। अरोड़ा साहब इस बात का बराबर ख्याल रखते कि दिवाली या नए वर्ष के समय एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट के सरकारी कर्मचारियों के पास बख्शीश समय पर पहुंच जाए। ये अरोड़ा साहब
नमक बेईमानी का अरोड़ा साहब का कपड़ों के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का दिल्ली में बहुत बड़ा कारोबार था। अक्सर वो चीन के व्यापारियों से संपर्क करके उनसे कपड़ों के एक्सपोर्ट का आर्डर लेते, फिर अपनी फैक्ट्री में कपड़ों को बनवा कर चीन भेज देते। इस काम में अरोड़ा साहब को बहुत मुनाफा होता था। उनकी इंपोर्ट और एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट में बहुत बड़ी पहुंच थी। अरोड़ा साहब इस बात का बराबर ख्याल रखते कि दिवाली या नए वर्ष के समय एक्सपोर्ट डिपार्टमेंट के सरकारी कर्मचारियों के पास बख्शीश समय पर पहुंच जाए। ये अरोड़ा साहब
read moreAjeet Malviya Lalit
कालेज नामा (कैप्सन में पढें) कालेज नामा भाग १ अजीत मालवीय 'ललित' स्कूल की पढ़ाई पूरी करके उच्च शिक्षा के लिए बड़े से शहर का रुख किया तो ढेरों समस्याओं का सामना करना पड़ा गांव की धूल मिट्टी को छोड़कर अब मैं एक बहुमंजिला इमारतों वाले शहर में अपने घर की यादों को तलाश कर रहा था रात करीब आठ बजे गर्मी के दिन थे ट्रेन से उतरा तो ढेर सारा शोर शराबा बहनों की तीक्ष्ण ध्वनि कानों को अप्रिय लग रही थी। जैसे तैसे ठिकाने पर पहुंचा और दूसरे दिन से शुरुआत होती है दौड़ भाग और सिर्फ दौड़-भाग की, कॉलेज पहुंचता हूं ।
कालेज नामा भाग १ अजीत मालवीय 'ललित' स्कूल की पढ़ाई पूरी करके उच्च शिक्षा के लिए बड़े से शहर का रुख किया तो ढेरों समस्याओं का सामना करना पड़ा गांव की धूल मिट्टी को छोड़कर अब मैं एक बहुमंजिला इमारतों वाले शहर में अपने घर की यादों को तलाश कर रहा था रात करीब आठ बजे गर्मी के दिन थे ट्रेन से उतरा तो ढेर सारा शोर शराबा बहनों की तीक्ष्ण ध्वनि कानों को अप्रिय लग रही थी। जैसे तैसे ठिकाने पर पहुंचा और दूसरे दिन से शुरुआत होती है दौड़ भाग और सिर्फ दौड़-भाग की, कॉलेज पहुंचता हूं ।
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