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Pushpa Sharma "कृtt¥"

#Hope #मौका_नहीं _है #गले _से _लगाने #हक़ _भी_नहीं #कितना _कीमती #बतलाने _का #नोजोटो #नोजोटोहिंदी

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bipin kumar"

#👍सुनो सुनो ये #दुनिया वालो कुछ हम👍 #बतलाने वाले है#👍💐🎂🎂👌

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 #👍सुनो सुनो ये #दुनिया वालो कुछ हम👍 #बतलाने वाले है#👍💐🎂🎂👌

Writer Pandit

Anushka Verma Nidhi Sharma Pooja Viney Pushkarna Pallavi Mishra Isha gupta Rekha Mewada Hindi

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कलम उठा ली मैंने  अपनी,
कहानी सुनाने को,
जीवन की छुपी हुई,
हर दास्तां बतलाने को,
लिखता हूँ मैं अक्सर
दिल के दर्द भुलाने को,
कुछ मुझसे सीख लो,
यह ज़मानें को बतलाने को। Anushka Verma Nidhi Sharma Pooja Viney Pushkarna Pallavi Mishra Isha gupta Rekha Mewada #NojotoHindi

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 41 - बताऊँ? मैया अपने लाल के "बताऊं" से घबड़ाती है। वह जानती है कि यह चपल "बताऊँ" कहकर पता नहीं क्या-क्या बललाने लगेगा और फिर स्नान कलेऊ सब भूल जाएगा। 'बताऊं मैया!' कन्हाई के कहते ही मैया हंसकर कह देती है - 'अभी तू अपना बतलाना रहने दे। पहिले हाथ-मुख धो और कुछ खा। दिन भर तो वनमें घूमता रहा है, तुझे भूख लगी होगी।' 'बताऊँ मैया, यह तोक कैसे फुदकता है।' कृष्ण को प्रतिदिन ही कुछ-न-कुछ बतलाना रहता है। वन से लौटते ही मैया के कण्ठ से जा लिपटता है और फिर कुछ बतलाना चाहता है। बतलाने की सैं

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।।श्री हरिः।।
41 - बताऊँ?

मैया अपने लाल के "बताऊं" से घबड़ाती है। वह जानती है कि यह चपल  "बताऊँ" कहकर पता नहीं क्या-क्या बललाने लगेगा और फिर स्नान कलेऊ सब भूल जाएगा।

'बताऊं मैया!' कन्हाई के कहते ही मैया हंसकर कह देती है - 'अभी तू अपना बतलाना रहने दे। पहिले हाथ-मुख धो और कुछ खा। दिन भर तो वनमें घूमता रहा है, तुझे भूख लगी होगी।'

'बताऊँ मैया, यह तोक कैसे फुदकता है।' कृष्ण को प्रतिदिन ही कुछ-न-कुछ बतलाना रहता है। वन से लौटते ही मैया के कण्ठ से जा लिपटता है और फिर कुछ बतलाना चाहता है। बतलाने की सैं

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 21 - मुझे ढूंढो लुका-छिपी का खेल जब खेला जाय, कन्हाई समझ ही नहीं पाता कि उसे छिपे रहना चाहिए और ढूंढने वाले से बोलना नहीं चाहिए। यह तो छिपने के स्थान से निकलकर पुकारेगा - 'मुझे ढूंढ।' श्रुतियों और योगीन्द्र-मुनीन्द्र युग-युग से ढूँढते होंगे इसे और समस्त साधकों का यही अन्वेष्य होगा, यह भिन्न बात है - उन्हें न मिलता होगा; किन्तु गोपकुमारों के लिए - प्रेमैकप्राण जनों के लिए तो यह कभी छिपा नहीं रहा किं इसे ढूँढा जाय। उनसे इसे छिपना आता ही नहीं है। कन्हाई छुपा ही हो तो कौन ढूँढकर पाव

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।।श्री हरिः।।
21 - मुझे ढूंढो

लुका-छिपी का खेल जब खेला जाय, कन्हाई समझ ही नहीं पाता कि उसे छिपे रहना चाहिए और ढूंढने वाले से बोलना नहीं चाहिए। यह तो छिपने के स्थान से निकलकर पुकारेगा - 'मुझे ढूंढ।'

श्रुतियों और योगीन्द्र-मुनीन्द्र युग-युग से ढूँढते होंगे इसे और समस्त साधकों का यही अन्वेष्य होगा, यह भिन्न बात है - उन्हें न मिलता होगा; किन्तु गोपकुमारों के लिए - प्रेमैकप्राण जनों के लिए तो यह कभी छिपा नहीं रहा किं इसे ढूँढा जाय। उनसे इसे छिपना आता ही नहीं है।

कन्हाई छुपा ही हो तो कौन ढूँढकर पाव


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