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Ankit

कुछ हकीकत देख के आंखें शर्मा जाती है !
इसलिए शायद कभी खुद पर हसीं आ जाती है ।
समझाए भी तो क्या और किसको भला अब !
एहसासों कि उलझनों में शब्द फसी रह जाती है । #फसी #शर्मा #yqbaba #yqdidi

Shyamal Kumar Rai

सिक्के,जिंदगी और औसत #रिफ्लेक्शन

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बचपन में एक रुपए का सिक्का निगल गया था 
मा ने गले से सिक्का निकलकर जिंदगी बचाई थी
आज सिक्कों में फसी जिंदगी से जिंदगी निकालकर ना जाने क्यों सिक्कें बचा रहा हूं।
सपनो को अपने गिरवी रख दिया है मैंने
किसी और के महत्वाकांक्षाओं का बोझ उठा रहा हूं
आज सिक्कों में फसी जिंदगी से जिंदगी निकालकर ना जाने क्यों सिक्कें बचा रहा हूं। सिक्के,जिंदगी और औसत
#रिफ्लेक्शन

Shyamal Kumar Rai

सिक्के,जिंदगी और औसत। #ConflictsofLife

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“बचपन में एक रुपए का सिक्का निगल गया था,मा ने गले से सिक्का निकालकर जिंदगी बचाई थी।
आज सिक्को में फसी जिंदगी से जिंदगी निकालकर ना जाने क्यों मैं सिक्के बचा रहा हूं।
खुशियों से कमाएं पैसे और पैसे से कमाई खुशियों का जब भी मैं औसत निकाल रहा हूं,ना जाने क्यों हर हिसाब में मै पैसे ज्यादा और खुशियां कम पा रहा हूं।
ना जाने क्यों मै सिक्को में फसी जिंदगी से जिंदगी निकालकर मैं सिक्के बचा रहा हूं।” सिक्के,जिंदगी और औसत।
#ConflictsofLife

Himanshu Chaturvedi

हां हूं मैं जिस्म बेचती इन भूखे बाजारों में के हां हूं मैं करती सौदा हवस  अंगारों में पर तुम जैसी ही पली बड़ी थी एक छोटे से गांव में  धमाचौकडी करती थी... मैं...खूब शरारत करती थी  मां के आंचल की छावों में मैं चिरैया नन्ही सी थी... चाह थी गगन में उड़ने की खूब किताबें लाती थी....चाह थी बड़े स्कूल में पड़ने को पर कुछ हुआ यूं  कि सपने सारे चुर हुए गिरी चिरैया धरती पर...गिरते ही पंख फिर धुर हुए #Hindi #hindiwriters #nojotohindi #kalakaksh

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हां हूं मैं जिस्म बेचती इन भूखे बाजारों में
के हां हूं मैं करती सौदा हवस  अंगारों में
पर तुम जैसी ही पली बड़ी थी एक छोटे से गांव में 
धमाचौकडी करती थी... मैं...खूब शरारत करती थी  मां के आंचल की छावों में

(READ CAPTION) हां हूं मैं जिस्म बेचती इन भूखे बाजारों में
के हां हूं मैं करती सौदा हवस  अंगारों में
पर तुम जैसी ही पली बड़ी थी एक छोटे से गांव में 
धमाचौकडी करती थी... मैं...खूब शरारत करती थी  मां के आंचल की छावों में
मैं चिरैया नन्ही सी थी... चाह थी गगन में उड़ने की
खूब किताबें लाती थी....चाह थी बड़े स्कूल में पड़ने को
पर कुछ हुआ यूं  कि सपने सारे चुर हुए
गिरी चिरैया धरती पर...गिरते ही पंख फिर धुर हुए


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