कुछ नायाब अहसास से है तेरे,कैद हूँ उनमें एक दौर बीतने को है तेरी नाराज़गी का, खफा मुझसे नही खफा खुद हो तुम तुमसें महोबतें,सलाखें यूँही नहीं करती रिहा अपनी गिरफ्त से अक्सर बहुत महंगी पड़ती है इनकी जमानतें चन्द रोज का आशिकाना है इस खूबशूरती-ए-शहर से हुई नागुज़ार दायरे में अपनी ना जाने कितनी क्यामतें एक रोज किसी दरिया के साहिल पर तखलत मुलाकात होगी जरूर मुझसे तुमसें ओर इस गुलज़ार यादों के कारवां से शायद हम रहे ना रहे "मीत" हमारे किस्से रहेंगे यूँही यहाँ फनाह होंगे नहीं कभी इस जमाने से।। #poetry #moveon #urdu #hindi #shayri #evening #khfa #love #mahobbtein #ishq