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ये माना क़ि कंचन कामिनी तुम्हे भरमाये रखती है

ये माना क़ि  
कंचन कामिनी  तुम्हे  भरमाये रखती है 
कीर्ति की  गुदगुदी  तुम्हारी चेतना  को  सुलाए रखती है 
ये और भी अच्छा है  क़ि  काल  का. चक्र 
तुम चलता हुआ कभी देख नहीं पाते 
क्यों क़ि  सुषुप्ति तुम्हारी तुम्हे  निस्सीम अनंतता को 
देखने नहीं देती 
जिस दिन खुलेगी   आँख और  जागरण का  बढ़ेगा भार 
तुम्हे लगेगा  जो कुछ पाया  व्यर्थ   था  वो 
क्योंकि चेतना का 'अधिकांश '  उस दरमियान   था  सोया हुआ # चेतना का अधिकांश
ये माना क़ि  
कंचन कामिनी  तुम्हे  भरमाये रखती है 
कीर्ति की  गुदगुदी  तुम्हारी चेतना  को  सुलाए रखती है 
ये और भी अच्छा है  क़ि  काल  का. चक्र 
तुम चलता हुआ कभी देख नहीं पाते 
क्यों क़ि  सुषुप्ति तुम्हारी तुम्हे  निस्सीम अनंतता को 
देखने नहीं देती 
जिस दिन खुलेगी   आँख और  जागरण का  बढ़ेगा भार 
तुम्हे लगेगा  जो कुछ पाया  व्यर्थ   था  वो 
क्योंकि चेतना का 'अधिकांश '  उस दरमियान   था  सोया हुआ # चेतना का अधिकांश