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शांति और क्रांतिकारी दोनों युगो का समकालीन रहा

शांति  और  क्रांतिकारी  दोनों युगो का समकालीन
रहा हूँ मै
अंदरो और  उजालो . मे रहने का  तज़ुर्बा भी
मै हासिल कर चुका  हूँ मै
तभी तो भ्रान्तियोंकी  गलियों मे  भटकता रहा हूँ
मै  और इसलिए  कई बार्बीटकरा जाता हूँ अज्ञात और अदृश्य दीवारों से
फिर घायल होकर  व्यर्थ का कोलाहल मचा कर आसमान क़ो सर पर उठा लेता  हूँ मै

©Parasram Arora
  भृमित गलिया

भृमित गलिया #कविता

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