सूफी संतो की बात याद आती हैँ "मेरे रब की जात इश्क हैँ.. पूरी कायनात इश्क है इस दुनिया क़े ज़र्रे ज़र्रे मे. प्यार हैँ l हा प्यार न होता तो फिर जीवन मे बचता क्या? प्यार बिना जीवन निस्सार हैँ जीवन मे प्यार का इन्वोल्वमेन्ट होते ही जीवन की खुशक पटकथा हरित होने लगती हैँ एक कंट्रास्ट. पैदा होने लगता हैँ तब कहीं जाकर जीवन मे रोचकता का आविर्भाव होता हैँ तभी तो ये जीवन एक भरपूर अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा होता हैँ कूद फांद मे ऱस लेने लगता हैँ हरित क्रांति.....