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"चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं " समाज के दायरों औ

"चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं "

समाज के दायरों और सोच के आगे ,
थोड़ा अलग ढल ही जाते हैं ,
चलो बचपन की शरारतों व बातों को 
पीछे छोड़कर सब और बड़े हो जाते हैं
 कितने पावन मोहक थे वो दिन ,
जिसमें मगरूर रहकर बस खुश थे सभी ,
आज उन बातों को भुलकर फ़िर से
 ,दुनियाँ में कुछ कदम खो जाते हैं ,
नहीँ खेलते वो खेल जो ,
हारने पे भी हँसा जाते हैं ,
ऐसा कुछ करेंगे जो सिर्फ जीतना सिखाये ,
खुद के साथ दूसरों को हँसाने का अनूठा राज ढूँढ़ लाते हैं ,
चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं 
न करेंगे किसी रस्म रिवाज़ की परवाह 
जीवन की आपाधापी में सभी अवांछित रिवाजों को भुला देते हैं ,
चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं ।
@स्वाति  की कलम से....

©swati soni
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