आज भी कुटुंब में श्रद्धा है, श्रद्धा संग उसका विश्वास नहीं हैं, शिथिल पड़ी-सी एक सरिता है, ऐसी सरिता की प्यास नही हैं। संतृप्ति कहीं सोयी पड़ी है, कुछ पाने की आस नही हैं, दूर से बातें हो रही हैं,सबसे साथ एक भी,पास नही है। आज भी कुटुंब में श्रद्धा है, श्रद्धा संग उसका विश्वास नहीं हैं, शिथिल पड़ी-सी एक सरिता है, ऐसी सरिता की प्यास नही हैं। संतृप्ति कहीं सोयी पड़ी है, कुछ पाने की आस नही हैं, दूर से बातें हो रही हैं,सबसे साथ एक भी,पास नही है।