मैं खड़ी किसी ऊंची पहाड़ी पर दुनिया देख रही थी रोशन था हर आलम पहर रात का था कुछ सोए हुए, कुछ रोए थे रातों मैं कुछ दुनिया से रोशन हुए कुछ खुद में जले है तो कुछ को दुनिया ने जलाया है यहां हर किसी ने , किसी ना किसी को , एक सीढ़ी बनाया है सीढ़ी