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ज़ुबाँ से कहूँ तो टूट जाती है ख़ामोशी, दिल से कहूँ

ज़ुबाँ से कहूँ तो टूट जाती है ख़ामोशी,
दिल से कहूँ तो बढ़ जाती है बेहोशी।

आँखों में लफ्ज़ हैं, पर वो पढ़ते नहीं,
दिल में सवाल है, पर वो सुनते नहीं।

हर आह में छुपा है एक दर्द का समंदर,
पर उनकी समझ से दूर है ये मुक़द्दर।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
ज़ुबाँ से कहूँ तो टूट जाती है ख़ामोशी,
दिल से कहूँ तो बढ़ जाती है बेहोशी।

आँखों में लफ्ज़ हैं, पर वो पढ़ते नहीं,
दिल में सवाल है, पर वो सुनते नहीं।

हर आह में छुपा है एक दर्द का समंदर,
पर उनकी समझ से दूर है ये मुक़द्दर।
ज़ुबाँ से कहूँ तो टूट जाती है ख़ामोशी,
दिल से कहूँ तो बढ़ जाती है बेहोशी।

आँखों में लफ्ज़ हैं, पर वो पढ़ते नहीं,
दिल में सवाल है, पर वो सुनते नहीं।

हर आह में छुपा है एक दर्द का समंदर,
पर उनकी समझ से दूर है ये मुक़द्दर।

©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर 
ज़ुबाँ से कहूँ तो टूट जाती है ख़ामोशी,
दिल से कहूँ तो बढ़ जाती है बेहोशी।

आँखों में लफ्ज़ हैं, पर वो पढ़ते नहीं,
दिल में सवाल है, पर वो सुनते नहीं।

हर आह में छुपा है एक दर्द का समंदर,
पर उनकी समझ से दूर है ये मुक़द्दर।