चलो आशियाँ मे फिर चलते हैं मिट्टी के घरौंधो में फिर बसते हैं जहाँ गोबर के लीपी धरती थी जहाँ मिट्टी के बर्तन खिलौने थे चलो उस आशियाँ में फिर चलते है जहाँ शादियों में सांझे का बिस्तर था बेटी की सादी में दुश्मन भी बाप था बिटिया गावँ की, अपनी बिटिया थी चलो उस आशियाँ में फिर चलते है जहाँ बिपात्ति में दुश्मन भी साथ था जहाँ झगड़े में भी खाना साथ था जहाँ बेटी को दहेज पूरा गांव देता चलो उस आशियाँ में फिर चलते है जहाँ हीरा और मोती दो नंदी बैल थे जहाँ गन्ने का रस हड़िया में दाल थी जहाँ खेत मे चने और चौराई साग था चलो उस आशियाँ में फिर चलते हैं जहाँ पहरुए की धाक धमकती थी जहाँ चाकी में दाल चटका करते थे जहाँ जात से घर आटा निकलता था चलो आशियाँ में फिर चलते हैं जहाँ दादी के हाथ का सत्तू था जहाँ दादा का एक किस्सा था जहाँ गिल्ली डंडा , कबड्डी थी चलो आशियाँ में फिर चलते हैं जहाँ भाई बहनो मे प्यार था जहाँ औरतो में भी लाज था जहाँ महिलाओं को आप था चलो आशियाँ में फिर चलते हैं जहाँ पग,तहमत ,कुर्ता धोती जहाँ मूछो पर ताव,जुबान था जहाँ धन बाटने का ही नाम था चलो आशियाँ में फिर चलते हैं जहां बाप का मलिकाना था जहां हर रिश्तो का पैमाना था जहा भाईचारे में मिठास थी चलो आशियाँ में फिर चलते हैं उस बने घरौदो में फिर बसते हैं जहां माँ के चूल्हे की रोटी थी जहां खेतो में बैल चला करते थे ......... #आशियाँ।