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सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है, आज इस श

सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।

लोगों से भरे रास्ते आज कुछ सुनसान से हैं,
चका-चोंध होते थे परिवार से जो आंगन, वो आज कुछ विरान से हैं।
कभी खुली हवा में साँस लेने को निकलना ज़रूरी सा लगता था,
आज उसी हवा से बचने को मुँह धकना मजबूरी सा लगता है।।

भरे रहते थे बाज़ार लोगों की ख्वाहिशों से कभी,
आज उन्ही लोगों से अस्पताल भरे हैं।
बिक रही है मौत खुले आम जहाँ 
आज के समय में हम ऐसी हवा में जी रहे हैं।। 

कभी शराब की बोतलों के लिए कतार में, 
तो आज बोतल में चंद साँसें पाने को भटक रहे हैं। 
क्या करवट ली है समय ने,
आज दो वक़्त की रोटी से ज़्यादा, दो पल की साँसों को तरस रहे हैं।। 

दूर नहीं वो दिन जब फ़िर से खुली हवा में घूमेंगे
चार दिवारों में नहीं, खुले आंगन में पुरानी खुशियाँ ढूढेंगे।
अपनो से आज कुछ दूर रहना मजबूरी है,
मजबूरी ही सही पर आज कुछ एह्तियाद ज़रूरी हैं।। 

क्योंकि.. 
सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।।
        
                         -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।

लोगों से भरे रास्ते आज कुछ सुनसान से हैं,
चका-चोंध होते थे परिवार से जो आंगन, वो आज कुछ विरान से हैं।
कभी खुली हवा में साँस लेने को निकलना ज़रूरी सा लगता था,
आज उसी हवा से बचने को मुँह धकना मजबूरी सा लगता है।।
सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।

लोगों से भरे रास्ते आज कुछ सुनसान से हैं,
चका-चोंध होते थे परिवार से जो आंगन, वो आज कुछ विरान से हैं।
कभी खुली हवा में साँस लेने को निकलना ज़रूरी सा लगता था,
आज उसी हवा से बचने को मुँह धकना मजबूरी सा लगता है।।

भरे रहते थे बाज़ार लोगों की ख्वाहिशों से कभी,
आज उन्ही लोगों से अस्पताल भरे हैं।
बिक रही है मौत खुले आम जहाँ 
आज के समय में हम ऐसी हवा में जी रहे हैं।। 

कभी शराब की बोतलों के लिए कतार में, 
तो आज बोतल में चंद साँसें पाने को भटक रहे हैं। 
क्या करवट ली है समय ने,
आज दो वक़्त की रोटी से ज़्यादा, दो पल की साँसों को तरस रहे हैं।। 

दूर नहीं वो दिन जब फ़िर से खुली हवा में घूमेंगे
चार दिवारों में नहीं, खुले आंगन में पुरानी खुशियाँ ढूढेंगे।
अपनो से आज कुछ दूर रहना मजबूरी है,
मजबूरी ही सही पर आज कुछ एह्तियाद ज़रूरी हैं।। 

क्योंकि.. 
सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।।
        
                         -लफ़्ज़-ए-आशना "पहाडी़" सुकून भरी इस ज़िन्दगी में एक महामारी आई है,
आज इस शहर में फ़िर से एक नई बिमारी आई है।

लोगों से भरे रास्ते आज कुछ सुनसान से हैं,
चका-चोंध होते थे परिवार से जो आंगन, वो आज कुछ विरान से हैं।
कभी खुली हवा में साँस लेने को निकलना ज़रूरी सा लगता था,
आज उसी हवा से बचने को मुँह धकना मजबूरी सा लगता है।।