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एक लपट है मेरी लहरों में, जो जलती नहीं,बस बहती है,

एक लपट है मेरी लहरों में,
जो जलती नहीं,बस बहती है,
कितनों को चुप कर जाती है,
पर मन की अनकही कहती है।
                                         जब सभ्यता सँवरती है,
                                         दीपों से फाग लिखती हूँ,
                                         नूतन रंगों से राग रचती हूँ,
                                         बरखा में आग लिखती हूँ।
शब्दों के सूत बुनती हूँ,
मुद्दे की बात करती हूँ,
जहाँ भी चोट खाती हूँ,जीने का
एक और अंदाज सीखती हूँ।
                                         प्रेम भरी कविता नहीं लिखती,
                                         क्रांति के किताब लिखती हूँ,
                                         युग का इतिहास पलटने को,
                                         परिवर्तन की बात करती हूँ । एक लपट है मेरी लहरों में,
जो जलती नहीं,बस बहती है,
कितनों को चुप कर जाती है,
पर मन की अनकही कहती है।
जब सभ्यता सँवरती है,
दीपों से फाग लिखती हूँ,
नूतन रंगों से राग रचती हूँ,
बरखा में आग लिखती हूँ।
एक लपट है मेरी लहरों में,
जो जलती नहीं,बस बहती है,
कितनों को चुप कर जाती है,
पर मन की अनकही कहती है।
                                         जब सभ्यता सँवरती है,
                                         दीपों से फाग लिखती हूँ,
                                         नूतन रंगों से राग रचती हूँ,
                                         बरखा में आग लिखती हूँ।
शब्दों के सूत बुनती हूँ,
मुद्दे की बात करती हूँ,
जहाँ भी चोट खाती हूँ,जीने का
एक और अंदाज सीखती हूँ।
                                         प्रेम भरी कविता नहीं लिखती,
                                         क्रांति के किताब लिखती हूँ,
                                         युग का इतिहास पलटने को,
                                         परिवर्तन की बात करती हूँ । एक लपट है मेरी लहरों में,
जो जलती नहीं,बस बहती है,
कितनों को चुप कर जाती है,
पर मन की अनकही कहती है।
जब सभ्यता सँवरती है,
दीपों से फाग लिखती हूँ,
नूतन रंगों से राग रचती हूँ,
बरखा में आग लिखती हूँ।