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तुममें संचित मैं जितना भी हूँ.... बस उतना ही मैं

तुममें संचित मैं जितना भी हूँ.... 
बस उतना ही मैं बाकी बचा हूँ.... 
इस जगत के बीच में अब......
थोड़ा बहुत ही शेष बचा हूँ.... 
सुख -दुख लाभ हानि अनेकों तरह के विचारों से 
मन की तमाम अवस्थाएं भी लुप्त हो गई हैं.... 

ढल चुका हूँ मैं तुम में एक उम्र के पड़ाव जैसा.... 
चाहूँ भी वापिस जाना तो असंभव सा लगता है... 
तुम आवाज़ दो मुझे कभी पुकारो तो सही 
कभी क्षण भर कर मुझे स्वीकारो तो सही 
शायद देह साथ न आये मेरी तुम्हारे 
तुम एक बार रूह को पुकारो तो सही 

हाँ.... 
तुममें खो कर मैं बस इतना ही अवशेष बचा हूँ 
कि तुममें संचित मैं जितना भी बचा हूँ... 
बस उतना ही अब मैं शेष बचा हूँ.... 

  लेखन- द हिमालयन योगी  ❤ 😀❤पहाड़न❤😀
तुममें संचित मैं जितना भी हूँ.... 
बस उतना ही मैं बाकी बचा हूँ.... 
इस जगत के बीच में अब......
थोड़ा बहुत ही शेष बचा हूँ.... 
सुख -दुख लाभ हानि अनेकों तरह के विचारों से 
मन की तमाम अवस्थाएं भी लुप्त हो गई हैं.... 

ढल चुका हूँ मैं तुम में एक उम्र के पड़ाव जैसा.... 
चाहूँ भी वापिस जाना तो असंभव सा लगता है... 
तुम आवाज़ दो मुझे कभी पुकारो तो सही 
कभी क्षण भर कर मुझे स्वीकारो तो सही 
शायद देह साथ न आये मेरी तुम्हारे 
तुम एक बार रूह को पुकारो तो सही 

हाँ.... 
तुममें खो कर मैं बस इतना ही अवशेष बचा हूँ 
कि तुममें संचित मैं जितना भी बचा हूँ... 
बस उतना ही अब मैं शेष बचा हूँ.... 

  लेखन- द हिमालयन योगी  ❤ 😀❤पहाड़न❤😀