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किस्तों में मरने की सजा हमसे पूछिए, जिंदगी तो इस त

किस्तों में मरने की सजा हमसे पूछिए,
जिंदगी तो इस तरह बीत गयी कि आपसे ना मिल पाए।
बिखरे बिना अब ये दिल जी नहीं सकता,
समझते तो हम भी थे पर अब नहीं हम बस रुख सकता।

हम तो खुद भी हार चुके हैं इस जिंदगी के खेल में,
अब खुशी की खोज में अकेले ही मिलते हैं हम कहीं।
बेइंतहाँ बदलावों की रफ्तार ने भी थमा दिया हमें,
हमने तो निभाई थी इस दुनिया से मोहब्बत का सच्चा अर्थ।

पर अब हर शख्स के पास खुद के दुख से ज्यादा फुर्सत है,
समझने की दीवानगी का कोई शौक नहीं रहा।
बातें तो बहुत होती हैं पर दिल की भावनाओं को कोई समझता नहीं,
इसीलिए हमने अपनी आंखों में समेट लिया अपनी सबसे अंतिम ख्वाहिश को भी।

किस्तों में मरने की सजा हमसे पूछिए,
हम तो दिल में जगह नहीं रख पाए अपनी खुशियों के साथ।
इस दुनिया में रहकर हमने भी अब तो देख लिया है सब,
खुश रहो ये हमारी दुआ है दिल से मंगता हुआ बचपन का वो सब।

©विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात ) किस्तों मे मारने की सजा हमसें पूछिए......
किस्तों में मरने की सजा हमसे पूछिए,
जिंदगी तो इस तरह बीत गयी कि आपसे ना मिल पाए।
बिखरे बिना अब ये दिल जी नहीं सकता,
समझते तो हम भी थे पर अब नहीं हम बस रुख सकता।

हम तो खुद भी हार चुके हैं इस जिंदगी के खेल में,
अब खुशी की खोज में अकेले ही मिलते हैं हम कहीं।
बेइंतहाँ बदलावों की रफ्तार ने भी थमा दिया हमें,
हमने तो निभाई थी इस दुनिया से मोहब्बत का सच्चा अर्थ।

पर अब हर शख्स के पास खुद के दुख से ज्यादा फुर्सत है,
समझने की दीवानगी का कोई शौक नहीं रहा।
बातें तो बहुत होती हैं पर दिल की भावनाओं को कोई समझता नहीं,
इसीलिए हमने अपनी आंखों में समेट लिया अपनी सबसे अंतिम ख्वाहिश को भी।

किस्तों में मरने की सजा हमसे पूछिए,
हम तो दिल में जगह नहीं रख पाए अपनी खुशियों के साथ।
इस दुनिया में रहकर हमने भी अब तो देख लिया है सब,
खुश रहो ये हमारी दुआ है दिल से मंगता हुआ बचपन का वो सब।

©विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात ) किस्तों मे मारने की सजा हमसें पूछिए......