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आलस्य में जो जन रहा। मृतपाय उसका जीवन रहा। सड़ता सद

आलस्य में जो जन रहा।
मृतपाय उसका जीवन रहा।
सड़ता सदा वही देखो, 
ठहरा हुआ जो जल रहा।
                -शैलेन्द्र

©HINDI SAHITYA SAGAR
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