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धरती और आकाश उठाये फिरते हैं, मधुवन में बनवास उठाय

धरती और आकाश उठाये फिरते हैं,
मधुवन में बनवास उठाये फिरते हैं।

सूखा-सूखा गुज़र गया है सावन भी,
सपनों में बरसात उठाये फिरते हैं।

बाहर तो पतझड़ का भारी मौसम है,
भीतर पर मधुमास उठाये फिरते हैं।

हमने की है लोगों की छीछालेदर,
अब उनका उपहास उठाये फिरते हैं।

इस बोझिल सी टूटी-बिखरी दुनिया में,
जीवन-कारावास उठाये फिरते हैं।
धरती और आकाश उठाये फिरते हैं,
मधुवन में बनवास उठाये फिरते हैं।

सूखा-सूखा गुज़र गया है सावन भी,
सपनों में बरसात उठाये फिरते हैं।

बाहर तो पतझड़ का भारी मौसम है,
भीतर पर मधुमास उठाये फिरते हैं।

हमने की है लोगों की छीछालेदर,
अब उनका उपहास उठाये फिरते हैं।

इस बोझिल सी टूटी-बिखरी दुनिया में,
जीवन-कारावास उठाये फिरते हैं।