गाँठ आजीवन हम पढ़ते रहते जाने कितने पाठ कभी खोलते कभी बांधते अपने मन की गाँठ कभी गाँठ देती है दिल के रिश्तों को मजबूती कभी तोड़ देती है रिश्ते जब किशमत हो फूटी खुलती नहीं गाँठ भले ही जल जाती है रस्सी जीवन भर हम करते रहते इससे रस्साकस्सी कभी हमें यह खुशी बाँटती बेखुद कभी रुलाती कभी लगाते इसे गले हम कभी पीटते छाती ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गाँठ