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एक आरज़ू है दिल की, एक तिश्.नगी है दिल की, मगर मैं

एक आरज़ू है दिल की, एक तिश्.नगी है दिल की,
मगर मैं कह सकूं ना तुझसे ये कैसी दिल्लगी है।

मेरी खामोश जुबां, अजनबी जहाँ, तू अंधेरे में शम्मां,
मगर मैं कह सकूं ना तुझसे ये कैसी बेखुदी है।

©Silent Shayar
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