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"" बंद दरवाजा "" बैठा था लिखने कुछ बेज़ुबा से सप

"" बंद दरवाजा ""


बैठा था लिखने कुछ बेज़ुबा से सपने को,
बाहर से आई आवाज कोई खोने चला है अपनों को,
देखा पास जाके तो कई सपने ख़ाक हो रहे थे।
"अब थक गया हूँ मैं,नहीं जीना मुझे", बंद दरवाज़े के पीछे पंखे पर लटके उस शख्स के ये अंतिम अल्फाज हो रहे थे।
बाहर दरवाज़ा खटखटाते माँ बाप हो रहे थे,पर अभी भी दरवाज़ा बंद था उस कमरे का,शायद दरवाजे के पीछे इंसान के कुछ सपने विलीन हो गए थे।

इकठ्ठी थी भीड़ बहुत बंद दरवाज़े के बाहर और वो अकेला बंद दरवाज़े के पीछे था।
दिया वास्ता उसे लोगों ने अपनों का, पर अब उसे शायद मौत, अपनों से ज्यादा प्यारी हो रही थी।

पूछा मैंने क्या वज़ह है इसकी जो ये पाप करने चले हो,अपने ही हाथो से अपने आप को मारने चले हो।
वो बोला -"कैसे सुनाऊँ तुम्हें अपनी नाकामी अपने मुहँ से, लिख दिया है मैंने भी अपनी ख़ामोशियों को हर्ष,अल्फाजों से गहरा नाता है तुम्हारा, तुम भी तो अपने दर्द लिखने लगे हो।
मैंने कहा"खुद से खफ़ा हो क्या।"
वो बोला आत्मा भी दुःखी है मेरी और परमात्मा मेरा नाराज,
आज आसमा भी बन जाएगा साक्षी जब पूरा होगा आत्मा का परमात्मा से मिलने का इंतज़ार।"

अब समझ नहीं पा रहा था कोई कैसे बचाए उसकी जान, कोशिश भी की बंद दरवाजा तोड़ने की, पर बनके खड़ा था वो दरवाजा भी हैवान।

अब चीख़ भी नहीं आ रही उसकी,सबका मन व्यथित सा होने लग गया,
खुला वो दरवाजा तब तक उस इंसान पर अपनी ही मौत का कलंक गया।

पड़ी थी उसकी आखिरी लेख मैंने,जिसपे पड़े थे बिखरे कई अल्फाज,
लिखा था उसमे,
         "हर्ष जिम्मेदारियाँ बड़ी है जीवन में, 
         कोशिश करना पूरी जिम्मेदारियाँ निभाने की,
         अगर सफल नहीं हो पाए तो कोई बात नहीं,
         जिंदगी है ढलना भी सीखा देगी।
         पर अगर मान गए बीच रास्ते में हार,
         तो अपनी ही नजरो में गिर जाओगे,
         और आपकी लाश भी इसी बंद दरवाज़े के पीछे लटकी पाएगी।"

©Harshu saini #sucide #writting 
#harshu_saini #banddarwaj
#Door
"" बंद दरवाजा ""


बैठा था लिखने कुछ बेज़ुबा से सपने को,
बाहर से आई आवाज कोई खोने चला है अपनों को,
देखा पास जाके तो कई सपने ख़ाक हो रहे थे।
"अब थक गया हूँ मैं,नहीं जीना मुझे", बंद दरवाज़े के पीछे पंखे पर लटके उस शख्स के ये अंतिम अल्फाज हो रहे थे।
बाहर दरवाज़ा खटखटाते माँ बाप हो रहे थे,पर अभी भी दरवाज़ा बंद था उस कमरे का,शायद दरवाजे के पीछे इंसान के कुछ सपने विलीन हो गए थे।

इकठ्ठी थी भीड़ बहुत बंद दरवाज़े के बाहर और वो अकेला बंद दरवाज़े के पीछे था।
दिया वास्ता उसे लोगों ने अपनों का, पर अब उसे शायद मौत, अपनों से ज्यादा प्यारी हो रही थी।

पूछा मैंने क्या वज़ह है इसकी जो ये पाप करने चले हो,अपने ही हाथो से अपने आप को मारने चले हो।
वो बोला -"कैसे सुनाऊँ तुम्हें अपनी नाकामी अपने मुहँ से, लिख दिया है मैंने भी अपनी ख़ामोशियों को हर्ष,अल्फाजों से गहरा नाता है तुम्हारा, तुम भी तो अपने दर्द लिखने लगे हो।
मैंने कहा"खुद से खफ़ा हो क्या।"
वो बोला आत्मा भी दुःखी है मेरी और परमात्मा मेरा नाराज,
आज आसमा भी बन जाएगा साक्षी जब पूरा होगा आत्मा का परमात्मा से मिलने का इंतज़ार।"

अब समझ नहीं पा रहा था कोई कैसे बचाए उसकी जान, कोशिश भी की बंद दरवाजा तोड़ने की, पर बनके खड़ा था वो दरवाजा भी हैवान।

अब चीख़ भी नहीं आ रही उसकी,सबका मन व्यथित सा होने लग गया,
खुला वो दरवाजा तब तक उस इंसान पर अपनी ही मौत का कलंक गया।

पड़ी थी उसकी आखिरी लेख मैंने,जिसपे पड़े थे बिखरे कई अल्फाज,
लिखा था उसमे,
         "हर्ष जिम्मेदारियाँ बड़ी है जीवन में, 
         कोशिश करना पूरी जिम्मेदारियाँ निभाने की,
         अगर सफल नहीं हो पाए तो कोई बात नहीं,
         जिंदगी है ढलना भी सीखा देगी।
         पर अगर मान गए बीच रास्ते में हार,
         तो अपनी ही नजरो में गिर जाओगे,
         और आपकी लाश भी इसी बंद दरवाज़े के पीछे लटकी पाएगी।"

©Harshu saini #sucide #writting 
#harshu_saini #banddarwaj
#Door
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Harshu saini

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