बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।। बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोई। जे मन खोजा आपणा, मुझसे बुरा न कोई।। पोथि पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोए । ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होए ।। ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोए। औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होए।। जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।। माया मरी ना मन मरा, मरि-मरि गया शरीर। आशा, तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर।। ©Harsh Upadhyay ©Harsh Upadhyay #राही #कबीरदास #कबीर_वाणी #कबीर_दोहे