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मंजिल तो मुझे मिल गई किसी तरह ओर मेरा हमसफर म

 मंजिल  तो  मुझे  मिल गई किसी तरह
ओर मेरा हमसफर  मुझे  अभी भीम मिला नहीं
हैँ
मंजिल  पाबे का जश्न अब  हम अकेले मनाये
कैसे?.
दोस्त की छोड़ो  क्कोई दुश्मन भी तो  आस पास नहीं दिख  रहा
अब तुम ही बताओ  इस जश्न को मनाने की.
दीवानगी का हम क्या करें
सुख का नगर मैं  केसे बसाऊ ?

©Parasram Arora
  सुख क़ा नगर

सुख क़ा नगर #कविता

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