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सख़्त है सर्द हवाओं का मिजाज़, बरसी है फिर आज बर्फी

सख़्त है सर्द हवाओं का मिजाज़,
बरसी है फिर आज  बर्फीली बरसात,
मन में सुलगती तेरी यादों की अलाव,
कितनी सोचों को करती रातभर में राख,
बिछोह के क्षण हैं आद्र ये मन है,
फिर भी ना जाने क्यूँ शुष्क ये नयन हैं,
शायद!
ये तेरे जाने का गम है।
वो पिछले दिसंबर की यही रात थी,
जब तुझ से मेरी आख़िरी मुलाकात थी,
दिसम्बर तो फिर लौट कर आ गया
पर लगता है तू साल की तरह....
बदल गया।

©Rajni Sardana
  #तू_बदल_गया
#दिसंबर