25 दिसम्बर को मिली थी, 17जुलाई से अब तक लापता है, उसका कुछ ना अब पता है।।। बातों तो अब भी करती है हकीकत मे ना मिलती है ना ख़ुद से कभी मिलवाती है।। वो ही सिर्फ एक लड़की है... जो समझदार बन के मर चुकी है।। फूलों का मरहूम हो चुका है कत्ल भी अब खून का हो चुका है बेकार ही मे सब का सब धरा है उसके अपने जैसे को कैद मे करा है।। ©विवेक कुमार मौर्या (अज्ञात ) अल्फाज़.101