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न कहकहे हैं न गलबहियाँ गुज़रा वक़्त है बढ़ती दूरि

न कहकहे हैं न गलबहियाँ 
गुज़रा वक़्त है बढ़ती दूरियाँ  ..

क्या कहें और किस से कहें 
चुप रहने की हैं मजबूरियाँ ..


— % & #materialisticworld
न कहकहे हैं न गलबहियाँ 
गुज़रा वक़्त है बढ़ती दूरियाँ  ..

क्या कहें और किस से कहें 
चुप रहने की हैं मजबूरियाँ ..


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