پُتلی اے چشم تک نا دیکھ سکا، کیا تھا درجہ اے لاثانی آنسو اے ندامت مے میں ڈوب مرا، دیکھ حیا اے عثمانی पुतली-ए-चश्म तक ना देख सका, क्या था दर्जा-ए-लासानी, आँसू-ए-नदामत में मैं डूब मरा, देख हया-ए-उस्मानी। पुतली-ए-चश्म= आंख का अंदर का हिस्सा लासानी= जिस की कोई मिसाल नहीं नदामत= शर्मिंदगी हज़रत उस्मान-ए-ग़नी (र आ) के बारे में एक कौल है की वो इतनी हया रखते थे की उनकी आंख मुबारक का अंदरूनी हिस्सा किसी ने नहीं देखा। आज हम खुले आम बे हयाई देखते हैं और हमें इसका मलाल तक नहीं होता। लेकिन इस्लाम इसकी हरगिज़ इजाज़त नहीं देता। Urdu_Word_Collab_Challenge_