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ऐसा न हों कही क़ि कदम तुम्हारे फिर से बहकने न लगे

ऐसा न हों  कही
क़ि कदम तुम्हारे  फिर से बहकने
न लगे... और नफरत  भीतर ही भीतर
 कुलबुलाने न लगे
साँसों का विषाक्त लावा  तुम्हारे
जीवन को झूलसा सकता हैं. और
तुम्हारे जीवन मे कृत्रिमता का
संचार कर सकता हैं.

©Parasram Arora
  ऐसा न हों कही

ऐसा न हों कही #कविता

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