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मैं जो  तुम्हारी  इक शिकायत हूँ, यह अच्छा हैं, तुम

मैं जो  तुम्हारी  इक शिकायत हूँ,
यह अच्छा हैं,
तुम झगड़ती हो मुझसे ,
यह और भी अच्छा है।।

तुम इस सब से नवीन हो जाती हो,
ऐसा लगता है,जम गई, 
आइसक्रीम हो लगती हो।।

तब पा कर  एक स्पर्श, 
और  तुम्हारा पिघल जाना,
है न कितना यह एहसास, सुहाना।।

लगता है न,

कितने पल वो सब जो खो दिए थे,
इक जरा सी लड़ाई ने,
इस उष्मा को पाते ही ,
आ गए  है करीब, 
इक अंगडाई मे।।

चाहता हूँ 
तुम शिकायत ही करो 
रहो जमी सी बर्फ की तरह,
ताकि पा कर  गर्मी  
हम पिघल जाए, 
ख़्वाब, ख़्वाहिश मे ही सही,
पास तो आए।।
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संदीप  शर्मा।।

©Sandeep Sharma
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