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हाय! हर पल हो रही इस पीर का क्या अंत नहीं? क्रूर न

हाय! हर पल हो रही इस पीर का क्या अंत नहीं?
क्रूर नज़रों से टटोलती नज़र का क्या अंत नहीं?
नर नहीं है वह नराधम है पिशाच जीवंत नहीं।
कर सके जो भर्त्सना न कुंठित कुत्सित कृत्य की।

क्या कभी होगा उदय न रवि जो अस्ताचल गया?
क्या  कभी होगा न सुरभित पुष्प जो मुरझा गया?
क्या कभी बरसेगा न पहले सा वह  सावन यहाँ?
क्या कभी होगा न अब पहले से वह मौसम यहाँ?

सूखकर डाली से निस्संग होता है पत्ता जहाँ,
पल्लवन होता नवल कोंपल का आया है सदा।
उत्कर्ष जिसका आज है अपकर्ष होगा कल सदा।
पूर्व में उत्थान रवि का तो अवसान पश्चिम में सदा।

©HINDI SAHITYA SAGAR
  #moonnight 
हाय! हर पल हो रही इस पीर का क्या अंत नहीं?
क्रूर नज़रों से टटोलती नज़र का क्या अंत नहीं?
नर नहीं है वह नराधम है पिशाच जीवंत नहीं।
कर सके जो भर्त्सना न कुंठित कुत्सित कृत्य की।

क्या कभी होगा उदय न रवि जो अस्ताचल गया?
क्या  कभी होगा न सुरभित पुष्प जो मुरझा गया?

#moonnight हाय! हर पल हो रही इस पीर का क्या अंत नहीं? क्रूर नज़रों से टटोलती नज़र का क्या अंत नहीं? नर नहीं है वह नराधम है पिशाच जीवंत नहीं। कर सके जो भर्त्सना न कुंठित कुत्सित कृत्य की। क्या कभी होगा उदय न रवि जो अस्ताचल गया? क्या कभी होगा न सुरभित पुष्प जो मुरझा गया? #Hindi #HindiPoem #कविता #hindipoetry #hindi_poetry #hindi_shayari #hindisahityasagar #poetshailendra

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