सुलझा नहीं पाए कभी हम उनसुलझे धागे उन रहस्यों क़े ज़ो कभी सपनो क़े अस्तबल से निरआश्रित होकर न जाने किस लोकमे पलायन कर गए. थे की थीं कोशिश उन्हें ढूंढ़ने की पुरातन शिलाओं और हड़प्पा कालीन कंदराओं मे भी पर मिला क्या? परास्त हठिली आशाये उत्पात से भरी कामनायें मांसल विहीन हड्डियों का ढेर और निर्वासित वासनाये ©Parasram Arora अनसुलझे धागे.....