अध्यात्म रामायण के तत्वावधान में हिंदी काव्य #०९#१०#११ ------------------------------------------------------ प्रकाशरूपता का कभी व्यभिचार नहीं होता, सूर्य में रात-दिन के भेद का आचार नहीं होता। सर्वथा प्रकाशमान हो ,मेरे शुद्ध चेतनघन राम, जहां कोई ज्ञान,अज्ञान का अंधकार नहीं होता। सूर्य में नही होता कभी किंचित भी कालिमा, विशुद्ध विज्ञान ज्योति स्वरूप में है लालिमा। इन्द्रीयरूपी कर्म मोह में आरोपित हो जाते, धीरे धीरे चली जाती है जीव की अरूणिमा। परमानंद ज्ञानस्वरूप में अज्ञान नहीं होता, राम के बिना रावण का समाधान नहीं होता। माया के अधिष्ठान के स्वयं स्वामी है राम, तनिक भी कभी कोई अभिमान नहीं होता। ----------------------------------------- संतोष कुमार शर्मा कुशीनगर ( उत्तर प्रदेश) ©santosh sharma #NojotoRamleela