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अब दिन शादी का था उसका लाल जोड़ा खरीदकर मैं घर लौटा

अब दिन शादी का था
उसका लाल जोड़ा खरीदकर मैं घर लौटा
लड़की वालों का घर था पर दुल्हन ने फैसला किया
अकेले ही सजना सवरना है
अपनी मर्ज़ी से ही सब हो रहा था
कमरे में जब पहुँचा तो साड़ी पहन रही थी
मैंने माफी मांगते हुए पीछे मुड़ा तभी कहती है
" यार इधर आ यह साड़ी कैसे पहनते हैं ? "
न ही प्लेट्स बनाई थी न ही बाल
दोनों कानो झुमके भी अलग अलग
इस झल्ली से कौन शादी करे सोचता था
एक हाथ मे मेहँदी थी एक मे नहीं
घुटनो पर बैठ कर मैंने पहले प्लेट्स ठीक करी
जब उठने लगा तो सर झुका हुआ और आँखें भारी हुईं
वापस घुटनो पर आगया
" अरे पिन निकल गयी " यही बहाना आया उस वक़्त
मेरे नीचे झुकते साथ ही वो भी नीचे झुक गयी
कहती " अरे क्या हुआ ? बता। मुझसे क्या छुपा रहा है । सिर्फ शादी ही तो हो रही है , दोस्ती थोड़े ही तोड़ रही हूँ "
कुछ रिश्ते बनते कुछ रिश्तो से टूटकर , अब कौन बताये इसे
और जब आँख भारी हो और कोई कंधे पर हाथ रखकर यह पूछले
कि क्यों रो रहे हो , उसी वक़्त सबसे ज़्यादा रोना आता है
यूँही सिसकियों में मै वो कह गया जिसे कहने की इजाज़त मेरे ज़मीर ने मुझे
नहीं दी थी
" मैं क्या करूँ स्नेहा । मुझे अब भी तुमसे प्यार है । मुझमे और उसमें ...."
बस इतने पर ही मैं रुक गया । शायद इसके आगे अगर कहता तो ,,,, खैर ।
इतना सुनते ही शायद उससे गुस्सा आया या कुछ और 
मेहँदी उठाकर दोनों हाथों में माली , और मेरे पूरे चेहरे पर पोत दी
मेरी शर्ट पर हाथो को फेर सीने से लिपट गई
सारा मेकअप उतर गया । उसे संभाला और आईने के सामने बैठाया
बाल सँवारे गुथ बनाई , सब पहले सा किया , नथ पहनाई , दूसरे हाथ पर मेहँदी लगाई

आशिक़ था मैं उसका , एक तरफा इश्क मुझे उससे , पर उससे पहले उसका दोस्त भी तो था ।

कैसा है यह रिश्ता मुझे मालूम नही । दोस्ती और प्यार दोनों ही हैं पर दोनों ही नही । इज़हार किया था एक दफा उससे मैंने । बस जो कहा उसे ही निभा रहा हूँ । मैन कोई तीर नही मारा । बस प्यार किया , निभाया , दोस्ती की निभाई #कहानी #कविता #शायरी
अब दिन शादी का था
उसका लाल जोड़ा खरीदकर मैं घर लौटा
लड़की वालों का घर था पर दुल्हन ने फैसला किया
अकेले ही सजना सवरना है
अपनी मर्ज़ी से ही सब हो रहा था
कमरे में जब पहुँचा तो साड़ी पहन रही थी
मैंने माफी मांगते हुए पीछे मुड़ा तभी कहती है
" यार इधर आ यह साड़ी कैसे पहनते हैं ? "
न ही प्लेट्स बनाई थी न ही बाल
दोनों कानो झुमके भी अलग अलग
इस झल्ली से कौन शादी करे सोचता था
एक हाथ मे मेहँदी थी एक मे नहीं
घुटनो पर बैठ कर मैंने पहले प्लेट्स ठीक करी
जब उठने लगा तो सर झुका हुआ और आँखें भारी हुईं
वापस घुटनो पर आगया
" अरे पिन निकल गयी " यही बहाना आया उस वक़्त
मेरे नीचे झुकते साथ ही वो भी नीचे झुक गयी
कहती " अरे क्या हुआ ? बता। मुझसे क्या छुपा रहा है । सिर्फ शादी ही तो हो रही है , दोस्ती थोड़े ही तोड़ रही हूँ "
कुछ रिश्ते बनते कुछ रिश्तो से टूटकर , अब कौन बताये इसे
और जब आँख भारी हो और कोई कंधे पर हाथ रखकर यह पूछले
कि क्यों रो रहे हो , उसी वक़्त सबसे ज़्यादा रोना आता है
यूँही सिसकियों में मै वो कह गया जिसे कहने की इजाज़त मेरे ज़मीर ने मुझे
नहीं दी थी
" मैं क्या करूँ स्नेहा । मुझे अब भी तुमसे प्यार है । मुझमे और उसमें ...."
बस इतने पर ही मैं रुक गया । शायद इसके आगे अगर कहता तो ,,,, खैर ।
इतना सुनते ही शायद उससे गुस्सा आया या कुछ और 
मेहँदी उठाकर दोनों हाथों में माली , और मेरे पूरे चेहरे पर पोत दी
मेरी शर्ट पर हाथो को फेर सीने से लिपट गई
सारा मेकअप उतर गया । उसे संभाला और आईने के सामने बैठाया
बाल सँवारे गुथ बनाई , सब पहले सा किया , नथ पहनाई , दूसरे हाथ पर मेहँदी लगाई

आशिक़ था मैं उसका , एक तरफा इश्क मुझे उससे , पर उससे पहले उसका दोस्त भी तो था ।

कैसा है यह रिश्ता मुझे मालूम नही । दोस्ती और प्यार दोनों ही हैं पर दोनों ही नही । इज़हार किया था एक दफा उससे मैंने । बस जो कहा उसे ही निभा रहा हूँ । मैन कोई तीर नही मारा । बस प्यार किया , निभाया , दोस्ती की निभाई #कहानी #कविता #शायरी
amitbisht4056

Amit Bisht

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