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उम्र गुजर रही है धीरे धीरे जैसे उधारी चुक रही

उम्र  गुजर रही है  धीरे  धीरे
जैसे  उधारी चुक रही हो  धीरे धीरे
नहीं थकी है कुदारी  अभी तक 
पर थक चुके  हाथ पाँव  धीरे  धीरे
गरीबी  आड़े  आती रही  धीरे धीरे
कुंवारी बिटिया ब्याही  धीरे  धीरे
अब तो  तप  चुकी है  भट्टी भी
अब तो  पुराना  सोना भी चमकेगा धीरे  धीरे
फूल कही  कर न दे शिकायत काँटों से
डरती हुई तितली  घुस आयी  बाग मे धीरे धीरे
उठ रहा था ज़ो दर्द  दिल मे कई दिनों से
बह जाएगा  वो आंसुओं क़े साथ  धीरे धीरे

©Parasram Arora धीरे  धीरे.......
उम्र  गुजर रही है  धीरे  धीरे
जैसे  उधारी चुक रही हो  धीरे धीरे
नहीं थकी है कुदारी  अभी तक 
पर थक चुके  हाथ पाँव  धीरे  धीरे
गरीबी  आड़े  आती रही  धीरे धीरे
कुंवारी बिटिया ब्याही  धीरे  धीरे
अब तो  तप  चुकी है  भट्टी भी
अब तो  पुराना  सोना भी चमकेगा धीरे  धीरे
फूल कही  कर न दे शिकायत काँटों से
डरती हुई तितली  घुस आयी  बाग मे धीरे धीरे
उठ रहा था ज़ो दर्द  दिल मे कई दिनों से
बह जाएगा  वो आंसुओं क़े साथ  धीरे धीरे

©Parasram Arora धीरे  धीरे.......
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Parasram Arora

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