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किस्सा रसकपूर - रागनी 4 तर्ज : देशी सूर्यवंश के क

किस्सा रसकपूर - रागनी 4
तर्ज : देशी

सूर्यवंश के कछवाहा गोत्र में, रजपूतों का उत्थान हुआ |
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।
करकै ख्याल देशकाल का, उनै जयपुर शहर बसाया ।
अपणे सुख ते भी बढ़कै उनै, प्रजा का सुख चाहया ।
राजा का न्या हुया करै था पर, ना कोई गरीब सताया।
वो आँख मूंद के चला गया, ना फेर कदे लौट के आया।
राम- राम कर चला गया वो, जिसका वंशज राम हुआ।
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।

जयसिंह के बेट्याँ का मन, आपस के म्हाँ पाट गया ।
गद्दी का लालच भाईयाँ नै, आपस के म्हाँ बाँट गया।
माधोसिंह, ईश्वरसिंह ने, राजा मानण ते नाट गया।
करकै साँठ मराँठा तै वो, भाई के पत्ते काट गया।
जिन्दगी के दिन पुरे होगे, फिर उसका भी काम तमाम हुआ।
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।

पाँच साल का पृथ्वीसिंह था, छोटी राणी का जाया।
प्रतापसिंह था तीन साल का, उस महाराणी का जाया।
उम्र में बड़ा होण के कारण, पृथ्वीसिंह गद्दी पे छाया ।
बाल उम्र में महाराणी ने विष दे के नै मरवाया।
तख्त ऐ ताउस दिल्ली पै तब शाहआलम एक खान हुआ।
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।

राजा बणकै प्रतापसिंह कै, दारु का चढ़ा नया सरूर ।
आकै मौत निगलगी उसनै, मौत का पंजा बड़ा क्रूर ।
आवागमन लग्या दुनिया में, यो कुदरत का है दस्तूर ।
जगतसिंह ईकलौता बेटा, जयपुर का बण्या नया हजूर ।
आनन्द कुमार कहै उम्र बीतगी, ना ईश्वर का ज्ञान हुआ |
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2020-21 #हरयाणवी_रागनी 

#shootingstars
किस्सा रसकपूर - रागनी 4
तर्ज : देशी

सूर्यवंश के कछवाहा गोत्र में, रजपूतों का उत्थान हुआ |
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।
करकै ख्याल देशकाल का, उनै जयपुर शहर बसाया ।
अपणे सुख ते भी बढ़कै उनै, प्रजा का सुख चाहया ।
राजा का न्या हुया करै था पर, ना कोई गरीब सताया।
वो आँख मूंद के चला गया, ना फेर कदे लौट के आया।
राम- राम कर चला गया वो, जिसका वंशज राम हुआ।
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।

जयसिंह के बेट्याँ का मन, आपस के म्हाँ पाट गया ।
गद्दी का लालच भाईयाँ नै, आपस के म्हाँ बाँट गया।
माधोसिंह, ईश्वरसिंह ने, राजा मानण ते नाट गया।
करकै साँठ मराँठा तै वो, भाई के पत्ते काट गया।
जिन्दगी के दिन पुरे होगे, फिर उसका भी काम तमाम हुआ।
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।

पाँच साल का पृथ्वीसिंह था, छोटी राणी का जाया।
प्रतापसिंह था तीन साल का, उस महाराणी का जाया।
उम्र में बड़ा होण के कारण, पृथ्वीसिंह गद्दी पे छाया ।
बाल उम्र में महाराणी ने विष दे के नै मरवाया।
तख्त ऐ ताउस दिल्ली पै तब शाहआलम एक खान हुआ।
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।

राजा बणकै प्रतापसिंह कै, दारु का चढ़ा नया सरूर ।
आकै मौत निगलगी उसनै, मौत का पंजा बड़ा क्रूर ।
आवागमन लग्या दुनिया में, यो कुदरत का है दस्तूर ।
जगतसिंह ईकलौता बेटा, जयपुर का बण्या नया हजूर ।
आनन्द कुमार कहै उम्र बीतगी, ना ईश्वर का ज्ञान हुआ |
एक शहर बसाया था जयसिंह ने जिसका जयपुर नाम हुआ ।।

गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया  © 2020-21 #हरयाणवी_रागनी 

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