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तन्हाई भी कहीं भीतर घर करती है और जो वक्त दर्द दे

तन्हाई भी कहीं भीतर घर करती है

और जो वक्त दर्द दे
उसे ये उम्र आहिस्ता आहिस्ता बसर करती है

खड़े हैं ओट में की कोई देख ना ले
ये आंखें क्यों सुर्ख हैं 
ये आंखें क्यों हँसते हँसते बहा करती हैं

©Manish Sarita(माँ )Kumar
  तन्हाई के घरौंदे...



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