धुआँ भी खूब है भाता न जब तक आंख है आता की भर गुबार को तन मन का नही गुबार है जाता कोई छल्ला है बनाता तो कोई छलनी हो जाता अजब है ये भी दुर्घटना मजा है मौत का आता है बड़ा भगवान भी क्या खास रचाता दुष्कर है वो हर मार्ग जो उत्कर्ष कराता और मातम के सभी मार्ग है आनंद के दाता ©दीपेश #उल्टा #opposite #worldnotobaccoday