माँ के हृदय ने नेह छलकाने में कभी एक क्षण जो थोड़ा पार्थक्य किया हो, चारों बच्चों की परवरिश में पुतुल ने कभी विभेद नहीं किया। किंतु अपनी गृहस्थी में बोदी की उपस्थिति उसे व्यथित कर जाती। (Read in caption.. 3rd story ) पुतुल, छरहरे गठन की सुंदर, तेज तर्रार युवती। घर-बाहर सब अकेले ही संभालती। बड़े सरकारी अधिकारी थे जमाई बाबू। उन्हें नौकरी से फुर्सत कहाँ होती। खूब कमाते और लाकर रख देते पुतुल के सामने। पुतुल बड़ी सूझबूझ से खर्च करती, बचाती। ऐसे भागती- दौड़ती , जैसे गृहस्थी नहीं, सारा संसार वही चला रही हो। वैसे संसार ही बसा रखा था उसने। सुबह चार बजे उठने के साथ उसका ढाबा शुरू हो जाता, बच्चों की स्कूल का टिफिन, सुबह का नाश्ता, घर पर रुके मेहमानों का नाश्ता खाना और सब निपटा कर धोबी का पाट खोल कर बैठती। नहा के पूजा प