औरतों की गप्पे शाम से पहले दोपहर के बाद घर से बाहर मोहल्ले के अंदर बरगद के पेड़ के पास छांव में जमती है हर इसी वक़्त औरतों की बैठक छुटकी की भाभी पिंटू की मामी पड़ोस वाली आंटी दादी और नानी बैठती है औरतें नई और पुरानी दुख दर्द सुनाती है सुनाती है अपने ही घरों के किस्से पड़ोसियों की होती है चुगलियां बांटती है अपने जीवन के हिस्से दादी नानी सुनाती है अपनी ही कहनियां सास सुनाती है बहुओ की और बहुयें सुनाती है सासों की शैतानियां बीच मे जोर जोर से ठहाके लगाए जाते है भावुक हो अगर तो ,आँसुये बहाई जाती है हां में हां मिलाई जाती है बात बिगड़ी और बनाइ जाती है बड़ी गौर से सुनी जाती है सबकी बातें और इसी तरह चलती रहती है औरतों की गप्पें औरतों की गप्पे शाम से पहले दोपहर के बाद घर से बाहर मोहल्ले के अंदर बरगद के पेड़ के पास छांव में