Unsplash कर ले सितम अब तेरी रुखसती के दिन हैं ना होगा दीद तेरा हम भी बा यक़ीन हैं अपनी ही मिल्कियत में तुझे तालियां मिलीं अब सुन ले ये गूंज तेरी आफियत के दिन हैं बड़ी रोशनी बिखेरती तेरे लेबलुआब है सूरज बता रहा तेरे , ढलने के दिन है बग़ावत की बस्ती में हुकूमत के दिन हैं, ज़मीरों के सौदे में सियासत के दिन हैं। जहाँ सच को दफ़्ना के ख़ुदा लिख दिया है चारों तरफ झूठ की इबादत के दिन हैं। लिबास में गुलामी झलकती है जिनकी वो कहते हैं उनकी बग़ावत के दिन हैं। जो पत्थर में भी चेहरे तलाश किए थे, वो कहते हैं बस उनकी शराफ़त के दिन हैं। जहाँ चोर को ताज औ' मेहराब सजे हैं उस दानिश की आज रुख़सती के दिन हैं राजीव ©samandar Speaks #Book मनीष शर्मा