हुआ आधूनिक समाज बढ़ी आधूनिक माँग प्रिये दो वक्त कि रोटी दो जोरें कपड़े सर पर सिलन बाली छत अब नही रही ये पर्याप्त प्रिये शरिर हुआ नाजूक वो बाहर कि धूल-मिट्टी सूरज कि गर्मी से काया जलती है AC , cooler , fridge कि जरूरत पड़ती है सड़क पे पड़े कंकड़ पाउँ मे बरे चूभते है अब दस कदम चलने से ही सासें आंह-भर घूटते है तब एक कार की जरुरत लगती है इस आधिनिक यूग ने रहन-सहन ,खान-पान ,बोल-चाल पैहनावे तक का रंग ढंग है बदला जो English मे गिटर-पिटर बोल ना पाये उसे दूनिया घृनित रुप से आलोचित करती है अब तूम ही बताओं कैसे करू तूम्हारा प्रेम स्वीकार? प्रिये थरथराते हाथों से तुम्हें दे तो दिया ताज़ा गुलाब कहकर iloveu पर कैसे मिले उसे जवाब