हम तुम कभी चले थे साथ - साथ मीलों दूर का सफर पता तक नहीं चला, फिर धीरे - धीरे शब्द खामोश होने लगे उदासी और खामोशी का कारण भी नहीं मिला । समझ नहीं आया यूं हरे पेड़ों के पत्तों का अचानक पीला हो जाना , देखती रही बहते आंसुओं की तरह पत्तों का टूटकर बिखर जाना , हम तुम चलते रहे साथ एक दूसरे से बेखबर , एक ही शिला पर बैठ जाते गुमसुम पीठ फेर कर । डूबा जा रहा था सबकुछ अंधेरे में , दूर चांद की रोशनी में पेड़ों के झुरमुट में चिडियों के कोहराम ने सन्नाटा चीर निष्प्राण तन्द्रा झकझोर दी , सूखे पत्तों के चरमराते ढेर में स्पन्दन हो उठा , हाथ बढ़ा कसकर मेरा हाथ पकड़ लिया मैं तो थी ही तुम्हारी परछाई बाहों में थाम लिया , तुम्हारा नींद से जाग कर पश्चाताप में रो देना , मेरा हाथ पकड़ घरोंदे में वापस लौट आना जैसे कभी उदासी थी ही नहीं , क्योंकि हम से तुम हो और तुम से हम हम कभी अलग थे ही नहीं सिर्फ तुम और हम । स्वरचित और वास्तविक usha ©Usha Dravid Bhatt जीवन में कब कैसा समय आयेगा पता नहीं चलता । #Twowords