लौह पुरुष भी सांध्य वेळा की सुखद नीरवता मे पिघल कर मोम बन सकता है दिन मे ज़ब तक सूर्य तपा हुआ था लोहा अपने ठोस आकार को संभाले हुआ था लेकिन चाँद उगने और तारों क़े टिमकने क़े सांध्यकालीन सत्र मे लौह पुरुष क़े ठोसपन को संवेदनाओं क़े सौजन्य से मोम बन जाने की प्रेरणा से भर देती है ©Parasram Arora लौह पुरुष.......