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एक छोर पे प्राचीर दीवारों से टेके हुए प्रयाग की म

एक छोर पे
प्राचीर दीवारों से टेके हुए 
प्रयाग की मिट्टी को लपेटे हुए 
भिखारियों के झुंड में
त्रिसा और भूख को समेटे हुए 
निर्वस्त्र वे
जिनका वर्तमान है मटमैला
भविष्य का जिनको चिंतन नहीं
आशाए फटी और चिथड़े हुए 
ये सब गुमनाम सितारे हुए 
टोलियों में
प्रसन्नचित्त भाव जिनके घनेरे हुए 
दो वक्त की रोटी का मंथन नहीं
आंखों के भाव जिनके अलबेले हुए 
ये वे बच्चे जिनके ख्वाहिश अंधेरे हुए ।

©Shilpa yadav
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